अपनी यादें तु ले के जा पगली
रात दिन अब न तू सता पगली
इश्क़ अपना तो है दिया जैसा
ये ज़माना तो है हवा पगली
मुफ़लिसी ने मुझे दिखाया है
झूठी दुनिया का आइना पगली
ये मुहब्बत कोई मज़ाक नहीं
इम्तिहाँ की है इन्तेहा पगली
हर कदम सोच सोच कर रखना
रास्ता है नया नया पगली
भूल बैठा हूँ सब मुहब्बत में
नाम मेरा मुझे बता पगली
काँच की तरह जिनको तोड़ा था
अब वो सपने उठा के ला पगली
इश्क़ करने का गर इरादा है
ज़िंदगी खाक़ में मिला पगली
#ज्ञानेन्द्र पाठक